होनहार बालक
कुछ गाये जंगल मे चर रही थी। ग्वाले राजा – प्रजा का खेल – खेल रहे थे। एक बच्चा राजा बना दूसरा मंत्री, तीसरा सेनापति, बाकी प्रजा जन। फिर खेल शुरू हो गया। एक व्यक्ति .. रोता-बिलखता आया। बोला- “महाराज! मेरी घरवाली मर गई है, एक छोटा-सा बच्चा है, उसके लिए एक गाय चाहिए।” राजा ने आज्ञा दी- “मंत्री जी ! इसे हमारी गायों में से एक गाय दे दी जाए।” राजा की आज्ञा का तुरंत पालन हुआ । व्यक्ति राजा को प्रणाम कर खुश होकर चला गया। पेड़ के नीचे खड़ा एक बूढ़ा व्यक्ति यह खेल देख रहा था। उसकी नज़र राजा बने लड़के पर जमी हुई थी। तभी वहाँ दो स्त्रियाँ आईं। एक की गोद में नवजात शिशु था। उसने राजा से कहा- “दुहाई हो महाराज ! यह औरत मेरी सेविका है। कहती है कि बच्चा मेरा है। मेरे बच्चे को अपना बच्चा बताती है महाराज! न्याय कीजिए, दया कीजिए”
राजा ने दोनों स्त्रियों को ध्यान से देखा। बोला- “सेनापति ! बच्चे के दो टुकड़े करके आधा-आधा दोनों को दे दो।” सेनापति तलवार लेकर बच्चे की ओर बढ़ा ही था कि दूसरी औरत राजा के पैरों पर गिर पड़ी। बोली – “दुहाई महाराज ! बच्चा इसी को दे दीजिए। बच्चे के टुकड़े मत कराइए। मेरा बच्चा जीवित तो रहेगा।” शिरोच्छेदन किया जाए।” राजाज्ञा का तुरंत पालन हुआ। राजा ने कड़ककर कहा- “मंत्री जी ! बच्चे की असली माँ यही है। नकली माँ का तुरंत पेड़ के नीचे खड़ा बूढ़ा व्यक्ति यह खेल देखकर दंग रह गया। पता लगाता-लगाता वह राजा बने बालक की माँ के पास पहुँचा। बोला- “देवी! अपना पुत्र मुझे दे दें। मैं इसे पढ़ा- लिखाकर राजा बनाऊँगा। माँ को भला क्या आपत्ति हो सकती थी। वह तो अपने शरारती पुत्र से पहले ही परेशान रहती थी।
जानते हो यह बालक कौन था? यह था चंद्रगुप्त और वह बूढ़ा व्यक्ति था क्या चाणक्य ने बालक के तेज को पहचान लिया। उसके नेतृत्वगुण की पहचान लिया, उसकी बुद्धिमत्ता को पहचान लिया और पहचान लिया उसकी निर्णय क्षमता को सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य और उसके महामंत्री चाणक्य ने भारतीय इतिहास में जोड़े। दोनों ने मिलकर एक महान् शक्तिशाली साम्राज्य की स्थापना की। सम्राट चंद्रगुप्त बचपन से ही बड़े वीर थे।
Hindi Story – 2
दूसरी बात बीजापुर राज्य की है। एक दिन एक कसाई सिर पर मांस का टोकरा रखें बाजार से गुजर रहा था। मांस कपड़े से ढका नहीं था। एक बालक ने उसे देखा। बोला- “बिना ढके इस तरह मांस ले जाना तो अपराध है। कसाई ने उसकी और जलती नजरों से देखा और कहा, “जा-जा…।” अभी कसाई के मुँह की बात पूरी भी न हुई थी कि बालक ने उछलकर उसका सिर भुट्टे की तरह उड़ा दिया।
सिपाहियों ने बालक को पकड़ लिया और बीजापुर के बादशाह के सामने पेश किया। “तुमने कसाई को मारा..?”
“जी हुजूर, वह मांस को बिना ढके ले जा रहा था ।”
“बिना ढके? क्या यह सच है?”
“जी हुजूर, बिल्कुल सच है। आप सिपाहियों से पूछ लें ।”
बादशाह ने सिपाहियों की ओर देखा। उन्होंने बताया कि बालक ठीक ही कह रहा है। यह सुनकर बादशाह ने कहा, “इसने तो राजाज्ञा का पालन किया है। इसे छोड़ दिया जाए।”
यही बालक आगे चलकर छत्रपति शिवाजी के नाम से प्रसिद्ध हुआ। उन्होंने तत्कालीन प्रतापी मुगल सम्राट औरंगजेब से टक्कर लेकर महान् मराठा राज्य की नींव डाली। पंजाब केसरी महाराजा रणजीत सिंह तेरह बरस की आयु में गद्दी पर बैठे।
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