गंगा के तट पर अनेक राज्य बसे हुए थे। इन राज्यों में एक विशेष राज्य था- कनकपुर। कनकपुर में रामसिंह नामक राजा राज्य करता था। उस राजा के पास एक दीवान था उसका नाम था प्रतापसिंह। प्रतापसिंह अब बूढ़े हो चले थे। एक दिन प्रतापसिंह ने महाराज से विनती की दीनबन्धु ! दास ने आपकी सेवा चालीस वर्षो तक की, अब कुछ दिन परमात्मा की भी सेवा करने की इच्छा है इसलिए आप से आज्ञा चाहता हूँ। अब मेरी अवस्था भी ढल गई है, राज-काज के कार्य करने की शक्ति भी अब कम धीरे – धीरे कम होती जा रही है।
राजा रामसिंह अपने आज्ञाकारी, अनुभवशील, नीतिकुशल और ईमानदार दीवान का बड़ा आदर करते थे। उन्होंने बहुत समझाया। परंतु दीवान साहब न माने तो राजा जी ने उनकी प्रार्थना स्वीकार कर ली और यह शर्त लगा दी कि रियासत के लिए नया दीवान आपको ही खोजना पड़ेगा।
दूसरे दिन देश के प्रसिद्ध अखबारों में यह विज्ञापन निकला कि – “कनकपुर राज्य के लिए एक सुयोग्य दीवान की आवश्यकता है। जो सज्जन स्वयं को इसके योग्य समझें, वे वर्तमान दीवान प्रतापसिंह की सेवा में उपस्थित हो यह आवश्यक नहीं कि वे ग्रेजुएट हों मगर उन्हें हृष्ट-पुष्ट होना आवश्यक है। एक महीने तक उम्मीदवारों के रहन-सहन, आचार-विचार की परख की जाएगी; विद्या कम परंतु कर्त्तव्य का अधिक विचार किया जाएगा। जो महाशय इस परीक्षा में खरे उतरेंगे, वे ही इस पद को सुशोभित करेंगे। तथा उन्हे ही इस पद के योग्य समझा जायेगा।”
इस विज्ञापन ने सारे देश में हलचल मचा दी। ऐसा ऊँचा पद किसी के वश में नहीं, केवल नसीब का खेल हैं। सैकड़ों सज्जन अपना-अपना भाग्य परखने के लिए चल पड़े। दीवान प्रतापसिंह ने उन महानुभावों के आदर सत्कार का बड़ा अच्छा प्रबंध किया। सबको अलग-अलग कमरों में ठहराया गया। चुनाव के दिन से कई दिन पहले अनेक महाशय अपने-अपने कमरों में आकर ठहर गए। समय व्यतीत करने के लिए लोग कभी शतरंज खेलते तो कभी ताश। एक दिन कई नौजवानों ने हॉकी का खेल खेलने का प्रोग्राम बनाया। वे अपनी-अपनी हाँको स्टिक लेकर मैदान में आ गए। वे शाम तक मैदान में हॉकी खेलते रहे। इस मैदान से थोड़ी दूरी पर एक नाला था। उस पर कोई पुल नहीं था। पथिकों को नाले में से ही जाना पड़ता था। अँधेरा हो गया था। तभी एक किसान अनाज से भरी गाड़ी लिए उस नाले को पार करने के लिए आया। उसकी गाड़ी उस नाले में फँस गई। किसान बहुत परेशान हुआ। वह कभी बैलों को ललकारता, कभी पहियों को हाथों से ढकेलता, लेकिन बोझ अधिक होने के कारण गाड़ी टस से मस न होती। किसान बड़ी विपत्ति में फँस गया था। तभी उस बेचारे किसान ने कई खिलाड़ियों से विनती की- “हे नौजवानों! मुझे इस विपत्ति से उबारो। मेरी गाडी को यहां से बाहर निकलवाने मे मेरी मदद करो वरना मुझे सारी रात इसी कीचड़ में ही गुजारनी पड़ेगी।” खिलाड़ियों ने एक-दूसरे को देखा। कई खिलाड़ी किसान का अनदेखा कर वहाँ से गुजर गए। किसान ने प्रत्येक खिलाड़ी से याचना की परंतु एक-एक करके सभी खिलाड़ी वहाँ से चले गए। किसान को यह देखकर बहुत निराशा हुई। तभी उसने देखा कि एक हृष्ट-पुष्ट व्यक्ति हाथ में हॉकी लिए हुए लँगड़ाता चला आ रहा है। किसान उस लंगड़े खिलाड़ी को देख रहा था जिसे आज ही खेलते चोट लगी थी। उसने किसान को निराश व परेशान देखा तो अपनी हॉकी किनारे पर रखी, कोट उतारा और किसान के पास जाकर बोला- “क्या मैं तुम्हारी गाड़ी निकाल दूँ?”
किसान ने कहा – “हुजूर! आप जैसे सभ्य, पढ़े-लिखे सुंदर पोशाक वाले से कैसे कहूँ? युवक ने कहा “लगता है तुम यहाँ बड़ी देर से परेशान हो। अच्छा, तुम गाड़ी पर जाकर बैलों को हाँको, मैं पहिये को धकेलता हूँ। तुम्हारी गाड़ी अभी पार हो जाएगी।” यह कहते हुए वह सुंदर, सुशील, शिक्षित व्यक्ति नाले में घुस गया और लगा पहिया धकेलने। कीचड़ अधिक होने के कारण वह युवक घुटने तक कीचड़ में धँस गया। उसने जोर लगाया तो बैलों को भी सहारा मिला। किसान ने बैलों को हाँका। गाड़ी तत्काल ही नाले के ऊपर आ गई।
किसान हाथ जोड़कर युवक के सामने खड़ा हो गया और बोला- “महाराज! आपने आज मुझे उबार लिया, नहीं तो सारी रात यहीं बैठना पड़ता।”
युवक ने मुस्करा कर कहा- “लाओ, इनाम तो देते जाओ।”
किसान बोला- “प्रभु ने चाहा तो दीवानी आप को ही मिलेगी।”
अगले दिन चुनाव होना था। उम्मीदवार लोग प्रातःकाल से ही अपनी किस्मत का फैसला सुनने के लिए उत्सुक थे। सभी सोच-विचार में मग्न थे कि न जाने आज किसके भाग्य खुलेंगे। न जाने किस पर लक्ष्मी की कृपा-दृष्टि होगी।
राजा के दरबार में राज्य के कई अमीर, नेता, राज्य कर्मचारी, दरबारी तथा दीवानी के सभी उम्मीदवार उपस्थित हुए।
तब दीवान प्रताप सिंह ने खड़े होकर कहा- मेरे भाइयो! मैंने आप लोगों को जो कष्ट दिया उसके लिए क्षमा चाहता हूँ मुझे इस पद के लिए ऐसे पुरुष की आवश्यकता थी जिसके हृदय में दया-भाव हो, जो दूसरे को विपत्ति में देखकर दुःखी हो और अपने आत्म-बल, बाहुबल तथा वीरता से उसका सामना करे। जो बाहरी आडंबर का पुजारी न हो। इस राज्य के दीवान के लिए मुझे ऐसा गुणी पुरुष मिल गया है। मैं अपने राजा को नए दीवान केशवसिंह के पाने पर बधाई देता हूँ।
प्रतापसिंह ने फिर कहा – “अनेक उम्मीदवार देखकर मैं असमंजस में था कि किसको दीवानी के पद पर नियुक्त करूँ। कल मैं ही किसान का रूप धारण कर अनाज की बोरियाँ लेकर नाले में गया। आप सभी ने अपनी पोशाक अपनी स्थिति को ध्यान में रखकर मुझे देखकर भी अनदेखा कर दिया था। मनुष्य की परख उसके वस्त्रों से नहीं उसके गुणों से होती है। केवल केशवसिंह ही ऐसा गुणी व्यक्ति है जिसके हृदय में उदारता, दया और आत्मबल है। चोट लगने पर भी उसने गरीब किसान पर दया की। केवल केशवसिंह ही इस परीक्षा में सफल हुआ। अतः इस पद का अधिकारी केशवसिंह है।”
शिक्षा – इस लेख से हमे यह शिक्षा मिलती है कि जरुरतमंद लोगो की हमेशा मदद करनी चाहिए। जो दूसरो की मदद करता है ईश्वर उसकी भी मदद करता है।
मेरा नाम अपूर्व कुमार है मैंने कम्प्युटर्स साइंस से मास्टर डिग्री हासिल किया है | मेरा लक्ष्य आप लोगो तक हिंदी मे लिखे हुये लेख जैसे जीवन परिचय, स्वास्थ सम्बंधी, धार्मिक स्थलो के बारे मे, भारतीये त्यौहारो से सम्बंधित, तथा सुन्दर मैसेज आदि सुगमता से पहुचाना है. तथा अपने मातृभाषा हिन्दी के लिये लोगो को जागरूक करना है. आप लोग नित्य इस वेबसाइट को पढ़िए. ईश्वर आपलोगो को एक कामयाब इंसान बनाये इसी कामना के साथ मै अपनी वाणी को विराम दे रहा हूँ. अगर हमारे द्वारा किसी भी लेख मे कोई त्रुटि आती है तो उसके लिये मै क्षमाप्रार्थी हूँ. |
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