Chanakya Quotes in Hindi – कामयाबी के लिये याद रखे आचार्य चाणक्य की ये नीतियां

चाणक्य ने जिस प्रकार से प्रतिज्ञा की थी अगर उनका विश्वास अपनी आत्मा पर नही होता, तो मगध के राजा महापद्मानंद को अपदस्थ नही करवा पाते | अंत:करण की आवाज तो ईश्वर की मुख से निकली वाणी होती है | चाणक्य जी एक ऐसे महापुरुष थे जिनके बारे मे जितना कहा जाये उतना कम है |

आइये उनके कुछ कहे और लिखे विचार से आप लोगो को अवगत कराते है जिनका अनुशरण करके हम अपने जीवन को सफलता की नई उचाईयों पर ले जा सकते है

chanakya niti

1 – सुस्त आदमी से विद्या और लक्ष्मी दूर भागती है |

2 –  तेल मे पानी नही मिल सकता | घी मे से जल नही निकलता | पारा किसी से नही मिल सकता | इसी तरह विपरीत स्वभाव वाले एक – दूसरे से कभी नही मिल सकते |

3 – गुण समझदार आदमी के पास जाकर ही निखरता है | मूर्ख गुण का मान क्या जाने |

4 – जो पाखण्डी होता है, वह दूसरो का काम बिग़ाड देता है | अमीर आदमी जब धन का दुरुपयोग करता है तो वह अंदर से पापी होता है |

5 – गन्दगी के कीडे केवल गन्दगी मे जीते है, उनके लिये वही स्वर्ग के समान होता है |

6 – धर्म नही है जिसमे दया की शिक्षा ना मिले | जिस धर्म से दया की शिक्षा ना मिले उसे छोड देना हितकर है,

7 – कोयल का रंग काला होता है, किंतु उसकी आवाज़ कितनी मधुर होती है | इसलिये बदसूरतो से घृणा ना करो |

8 – अंधाधुंध खर्च करने वाले जो अपनी आमदनी से अधिक खर्च करते है | दूसरे से बेमतलब झग़डा करने वाले लोग कभी सुखी नही रह सकते |

9 – जो लोग लेन-देन पडाई – लिखाई , हर प्राणी से खुलकर बात नही करते है वे सुखी रहते है |

10 – पत्नी जैसी भी हो, धन जितना भी हो, भोजन जैसा भी हो, यह सब समय पर मिल जाये तो सबसे उत्तम है |

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11 – काम भले ही थोडा करो, पर मन लगाकर करो |

12 – सोने मे कभी खुशबू नही होती | चांद कभी दिन मे नही निकलता |

13 – परमात्मा सर्वगुण सम्पन्नम, सर्वव्यापी एवं सर्वज्ञाता है | उसकी तुलना किससे की जा सकती है |

14 – प्रत्येक व्यक्ति के कर्तव्य एवं पुरत्व का एक समय अवश्य आता है |

15 – कर्म करने से कोई भी कार्य सम्पन्न किया जा सकता है | चाहे वह कितना ही दुष्कर क्यों न हो ?

16 – प्रत्येक मननशील मनुष्य के मन मे अनेक विचार उठते रहते है | उनको सदा समाज के समक्ष कहने से उनका सम्मान कम हो जाता है | इसलिए उसे चाहिए कि वह मननपूर्वक उन विचारों को मन ही मे रखें |अपने स्वप्नो को साकार करने का यत्न मौन रहते हुए करे | कार्यान्वित हो जाने पर वे स्वयं प्रकट हो जायेंगे | इससे समाज मे उसकी प्रतिष्ठा बढेगी |

17 – जीवात्मा कर्म करने मे स्वतंत्र है परमात्मा का हाथ है | जीवात्मा जैसा कर्म करता है, वैसा फल पाता है |स्वयं सब योनियों मे भटकता है और यदि सौभाग्य से कभी उसका ज्ञान चक्षु खुल जाए तो अपने ही पुरुषार्थ मे पागलपन से डरकर विवेक पथ पर छा जाता है | लेकिन इसमे भी त्याग और तपस्या की जरुरत है |

18 – जिस किसी से जितना भी ज्ञान मिले, उसे ग्रहण कर लेना चाहिए और बदले मे कृतज्ञता प्रकट करनी चाहिए|

19 – परिश्रम करने पर धन अवश्य प्राप्त होता है | जिससे दरिद्रता नही रहती | अपने आराध्य देव का नाम याद करने पर पाप करने की प्रवृष्टि नष्ट हो जाती है | मौन धारण कर लेने पर लडाई का अंत हो जाता है | जागते रहने पर चोरो का भय दूर हो जाता है |

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20 – संध्या का उतना महत्व नही है जितना गुणो का होता है | एक चांद के समक्ष अनेक तारे क्यों?

21 – ज्ञान बहुत बडी सम्पदा है, लेकिन उसके अनुसार आचरण न हो तो वह ज्ञान व्यर्थ हो जाता है |

22 – मनुष्य को चाहिए कि वेश्याओं से अनुरक्त न हो वेश्याएं धन प्राप्ति के लिए धन देने वालो को मनोरंजनार्थ हंसाती है और सभी पुरुषो को अपनी ओर आकर्षित कर लेती है इसलिए इनकी प्रीति क्षणभंगुर होती है |

23 – कुटिल होना ठीक नही लेकिन सीधे – सादे स्वभाव का होना भी तो ठीक नही है | अन्यथा कोई ठग लेगा

24 – यह संसार तो एक कडवे वृक्ष के समान है जिसमे दो प्रकार के फल लगते है – मधुर मन और सत्संगति | ये दोनो मानव के लिए लाभकारी हैं जिनके स्वाद पाकर मानव जीवन सफल हो जाता है |

25 – जन्म के अंधे को दिखाई नही पडता | यह तो उसका दुर्भाग्य है | पिछले जन्म के पापो की ईश्वर प्राप्त सज़ा है | लेकिन अंधापन केवल आंखो का नही होता, बल्कि मन का भी होता है | जिससे वह अविवेकी, अत्याचारी एवं अन्यायी बन जाता है |

26 – भविष्य चाहे कितना भी सुन्दर क्यो ना हो ? इसकी कल्पना करने से क्या लाभ ? अतीत की चिन्ता भी नही करनी चाहिए | भविष्य तो वर्तमान पर निर्भर करता है | इसलिए तुम जो कर रहे हो उसी का चिंतन करों |

27 – सब लोग सबसे बैर – भाव नही रखतें | बैर – भाव तो लोग ईर्श्यावश करते है | मूर्ख विद्वानो से जलता है, इसलिए उनसे बैर-भाव रखता है | धनहीनो का धनिको से बैर-भाव रखना भी स्वाभाविक है |

28 – मनुष्य का मन हमेशा पवित्र होना चाहिए | जिसका अंत:करण अपवित्र है, ऐसा दुष्ट मनुष्य सैकडो बार तीर्थ स्नान क्यों न करे ? शुद्ध नही होता – जैसे मदिरा का बर्तन जलाया भी जाए तो शुद्ध नही होता |

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29 – घर की विवाहिता नारी से ही घर बनता है | लेकिन नारी होना काफी नही | उसमे नारीत्व, मातृत्व का गुण भी होना जरुरी है | पति के प्रति प्रेम भाव भी होना अनिवार्य है |

30 – मनुष्य के लिए स्वर्ग, नरक कही दूसरे लोक मे नही बल्कि पृथ्वी तल पर ही है |

31 – मनुष्य को इस संसार मे रहकर कुछ न कुछ करते रहना चाहिए | यह तो मायावी दुनिया है | इसलिए अपने आपको पापों से बचाने के लिए भगवान की पूजा करनी चाहिए |

32 – याद रहे, जैसे जंगल के एक पेड मे आग लग जाने पर सारा जंगल जलकर राख हो जाता है | उसी प्रकार यदि एक औलाद गलत एवं चरित्रहीन निकल जाए तो पूरा परिवार जलकर राख हो जाता है |

33 – संधि और एकता होने पर भी सतर्क रहें। आचार्य चाणक्य