1. जिन्दगी कैसे बितायी क्या कहूँ,
हो ना पायी कुछ कमाई क्या कहूँ,
रात भर विस्तर सजाते रह गये,
नींद तो पलभर ना आई क्या कहूँ|
उनसे मिलने की तमन्ना रह गयी,
उनकी अपनी आशनाई क्या कहूँ |
घन – तिमिर मे जैसे चपला की चमक.
ऐसे उनकी याद आई क्या कहूँ |
सब तरफ उनका मधुर स्वर गूंजता,
पर ना वे पड्ते दिखाई क्या कहूँ |
राधिका पथ जोहती ही रह गयी,
पर नही आये कन्हाई क्या कहूँ |
2. धरा धाम धन की दुराशा बनी है |
मेरी जिंद्गी खुद तमाशा बनी है ||
विषय – वासना के वशीभूत मन है |
मनोकामना एक लासा बनी है ||
नही दीन आता समझ मे न दुनिया|
भ्रमित बुद्धि मेरी कुहासा बनी है ||
नही बन सकी यार ! गंगा व जमुना |
मेरी जिंद्गी कर्मनाशा बनी है ||
बना चींटी मै धूल मे रेंगता हू |
अभी मधुकणो की पिपासा बनी है ||
उन्हे आज तक तो नही खोज पाया |
मगर खोज लेने की आशा बनी है ||
3. उनसे अपना वास्ता मालूम है |
उनके घर का रास्ता मालूम है ||
जानता हू उनका मै इंसाफ भी |
और अपनी भी खता मालूम है ||
क्या हमारी हैसियत उनके बिना |
ये हमे बजाफ्ता, मालूम है ||
दीन मे दुनिया मे उनसे भी बडा |
है न कोई शास्ता, मालूम है ||
आप क्या, हम क्या समूचा जग उन्हे |
देखने को कल्पता, मालूम है ||
मंदिरो मस्जिदो मे भी उनके सिवा |
है न कोई देवता मालूम है ||
स्व. डा0 शिवनारायण शुक्ल “प्रवक्ता हिंन्दी”
मेरा नाम अपूर्व कुमार है मैंने कम्प्युटर्स साइंस से मास्टर डिग्री हासिल किया है | मेरा लक्ष्य आप लोगो तक हिंदी मे लिखे हुये लेख जैसे जीवन परिचय, स्वास्थ सम्बंधी, धार्मिक स्थलो के बारे मे, भारतीये त्यौहारो से सम्बंधित, तथा सुन्दर मैसेज आदि सुगमता से पहुचाना है. तथा अपने मातृभाषा हिन्दी के लिये लोगो को जागरूक करना है. आप लोग नित्य इस वेबसाइट को पढ़िए. ईश्वर आपलोगो को एक कामयाब इंसान बनाये इसी कामना के साथ मै अपनी वाणी को विराम दे रहा हूँ. अगर हमारे द्वारा किसी भी लेख मे कोई त्रुटि आती है तो उसके लिये मै क्षमाप्रार्थी हूँ. |
हिंन्दी मे सोच पढने लिये आपका बहुत – बहुत धन्यवाद